लोक आस्था के महापर्व डाला छठ के अवसर पर मिर्जापुर, आजमगढ़ और वाराणसी के नदी-सरावरों के किनारे भी आस्था की अद्भुत झलक दिखी। उगते सूरज को अर्घ्य देकर लोगों से परिवार के लिए सुख-समृदि्ध की कामना की।
हे छठी मईया भूल चूक माफ करिहअ हमार के साथ छठ व्रतियों ने उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पर्व का समापन कीं। महापर्व डाला छठ के चौथे दिन मंगलवार को जिले के 157 घाटों (गंगा घाट, तालाब और पोखरा किनारे) उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए जन सैलाब उमड़ा।
भोर तीन बजे ही व्रती महिलाएं घाट पर पहुंच गईं। वे वेदी के सामने घुटने भर पानी में खड़ी होकर छठी मइया की आराधना में डूब गई। उग हे सुरुजदेव... भइल अरघ के बेर गीत गुनगुनाती रहीं। बादलों के चलते सूर्य के दर्शन तो नहीं हुए करीब तीन घंटे की प्रतीक्षा के बाद महिलाओं ने शुभ मुहूर्त में सुबह 6:25 बजेव्रती महिलाओं ने उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित की। इसी के साथ व्रतियों ने 36 घंटे के व्रत का पारण किया। इस दौरान शंख शहनाई की ध्वनि और छठी मइया के जयकारे से तट गूंज उठा।
नगर के कचहरी घाट, बरियाघाट, पक्काघाट, नारघाट, संकठाघाट, फतहांघाट पर आधी रात को ही व्रती महिलाएं अपनी बेदी के पास के पहुंच गई थीं। रात दो बजे से लोगों के घाट पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया। सड़कों पर आगे-आगे व्रती महिलाएं सूप में अखंड दीप लेकर चल रही थीं। पीछे-पीछे सिर पर प्रसाद का दउरा रखकर उनके परिजन चल रहे थे।
आस्था, संयम और श्रद्धा का प्रतीक चार दिवसीय छठ महापर्व मंगलवार की भोर में उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न हो गया। सुबह सूर्योदय से पहले ही शहर के गंगा घाटों पर व्रती महिलाओं और श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ पड़ी थी। काले बादलों के बीच जैसे ही भगवान भास्कर की लाल रश्मियां गंगा की लहरों पर पड़ीं, वैसे ही घाटों पर "छठ मइया के जय" और "सूर्य देव की जय" के जयकारों से पूरा वातावरण गूंज उठा।
नमो घाट, राजघाट, प्रह्लाद घाट, रानी घाट, सक्का घाट, गेला घाट, बुंदीपरकोटा घाट, गाय घाट, सिंधिया घाट और पंचगंगा घाट सहित शहर अन्य गंगा घाटों पर श्रद्धालु परिवारों के साथ पहुंचे थे। हर घाट पर घंटों पहले से जगह घेरकर लोग छठी मैया की पूजा की तैयारी में जुटे रहे। गंगा तट पर सजाई गई पूजा की टोकरी, केले, नारियल, ठेकुआ, खरना का प्रसाद और दीपों की रोशनी से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया।
नमो घाट और राजघाट पर ढोल-मंजीरों की थाप, पारंपरिक गीतों और लोक संगीत की गूंज से माहौल श्रद्धा से भरा रहा। व्रती महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में सजीं, तो पुरुषों ने घाट पर दीपदान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद मांगा। घाट किनारे परिवारों के साथ छोटे-छोटे बच्चे भी पूजा में शामिल हुए। घाटों की सुरक्षा व्यवस्था में पुलिस बल, गोताखोर दल और नगर निगम की टीमें भी तैनात रहीं।
सूर्य उपासना और लोक आस्था का यह पर्व गंगा तटों पर भक्ति और अनुशासन का अद्भुत संगम बन गया। अर्घ्यदान के बाद श्रद्धालुओं ने एक-दूसरे को पर्व की शुभकामनाएं दीं और छठी मइया के गीतों के साथ घर लौटे। पूरे वाराणसी में मंगलवार का प्रभात आस्था, भक्ति और उल्लास से भरा दिखाई दिया।
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